दोस्तों! काव्य का गहन विस्तृत सरोवर बड़ा ही मनोहर होता है तथा इसके अमूल्य मोती प्राणी जगत के हृदयों को आनन्द से रसारोहित कर देते हैं। आइए, पढ़ते हैं इस कविता को और प्राप्त करते हैं:)
रस युक्त सलिल दल पुंजो पर
रस युक्त सलिल दल पुंजो पर
है कलित झलकती कल-कल से;
भ्रम भ्रमर गूंजता गूंज-गूंज
पुष्पों के दल पर दल-दल से।
द्रुम-पादप करते हैं किलोल,
मोती सम लगते नद्य-नीर;
पुष्पों के अधरों पर बहती
शीतल, निर्मल, चंचल समीर।
कमलों की पंखुड़ियों से पंख
लहराते जैसे जलप्रपात;
भानु रश्मि में लिपटे पुलकित
रंग-बिरंगे, स्वर्ण गात।
गिरि नभधर का यह उच्च शिखर
है अंशुमालि से चमक रहा;
प्राणि जगत कौतूहल से,
सर्वत्र प्रेम रस बरस रहा।
भ्रम भ्रमर गूंजता गूंज-गूंज
पुष्पों के दल पर दल-दल से।
द्रुम-पादप करते हैं किलोल,
मोती सम लगते नद्य-नीर;
पुष्पों के अधरों पर बहती
शीतल, निर्मल, चंचल समीर।
कमलों की पंखुड़ियों से पंख
लहराते जैसे जलप्रपात;
भानु रश्मि में लिपटे पुलकित
रंग-बिरंगे, स्वर्ण गात।
गिरि नभधर का यह उच्च शिखर
है अंशुमालि से चमक रहा;
प्राणि जगत कौतूहल से,
सर्वत्र प्रेम रस बरस रहा।
Follow me on-
Comments
Post a Comment